Monday, October 31, 2016 | 9:51:00 PM
"वक्त का जादू"
सारी उम्र गुजर जाती है घर बनाने में,
पर बुनियाद हिलाकर घर तोड़ने में वक्त नहीं लगता..
मीलों तक कदमों से चलकर मंजिल मिलती है,
पर स्वार्थ के लिए लक्ष्य को ठोकर मारने में वक्त नहीं लगता...
दिल की कई धड़कनें जोड़कर रिश्ते बनते हैं,
पर कड़वी जुबान को रिश्ते तोड़ने में वक्त नहीं लगता...
जाने कितने पल गंवाकर रोटी कमाता है आदमी,
पर भरे पेट से रोटी कूड़े पर फेंकने में वक्त नहीं लगता...
कितनी इन्सानियत जोड़कर नाम पाता है आदमी,
पर भ्रष्ट होकर अपनी औकात गिराने में वक्त नहीं लगता...
बहुत उम्मीदें जोड़कर ख्वाब सजाता है मनु ष्य,
पर धोखे के पत्थर से सपने तोड़ने में वक्त नहीं लगता...
छोटी-छोटी साँसों की लड़ियों से बँधती है जिंदगी,
पर पीठ के खंजर को जिंदगी खत्म करने में वक्त नहीं लगता..
अहंकार से,अभिमान से कितना ही ऊँचा उड़ ले इन्सान,
पर वक्त को उसे जमीन पर लाने में वक्त नहीं लगता...।
अर्चना अनुप्रिया।
Posted By Archana Anupriya